book review

INSTITUTEOF VOCATIONAL STUDIES
AWADH CENTRE OF EDUCATION
(Affiliated by Guru Gobind Singh Indraprastha University)


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BACHELOR OF EDUCATION (B.Ed.) PROGRAMME
SESSION- 2016 – 2018



                                                                    
   


NAME: AMJAD HUSSAIN
R.NO.00513902116
Analysis of school text books to construct and discuss nature and types of knowledge and pedagogic elements



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पाठ्यपुस्तक की भूमिका
मनुष्य पुस्तको के माध्यम से ज्ञान संचित करता है पुस्तको के द्वारा ज्ञान संचित करना बहुत उचित एंव महत्वपूर्ण साधन साधन है ज्ञान ही को संचित नहीं किया जाता बल्कि इसके जरिए से नई पीढ़ी का ज्ञान दिया जाता है| अत: अध्यापक इस संचित ज्ञान को शिक्षण के दोरान प्रयोग करते है और छात्र परीक्षा के दोरान इसे प्राप्त करता है|
         पाठ्यपुस्तकों को स्वरूप तथा एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करने से पहले विषयवस्तु की सूची तैयार की जाती है|पता रहेता है कि पाठ्यपुस्तक में किस विषयवस्तु को शामिल किया गया है इस तरह पाठ्यवस्तु पुस्तके पाठ्यचर्या की पूरक होती है|मानव में किसी वस्तु को संचित करना की जन्मजात प्रवृति होती है मनुष्य अपनी अर्जिते अनुभवों और ज्ञान को भावी पीढ़ी हेतु संचित रखने के लिए उसे स्थायी महत्व की पुस्तको से कुछ साम्रगी चयन करके विविध स्तरों के छात्रों के लिए पुस्तकों के रूप व्यवस्थित क्र लेते है| इन पाठ्यपुस्तके ही उन्हें यह निर्देश देती है कि कक्षा अनुसार उन्हें अधिगम में किस पाठो से सम्बधित ज्ञान को अर्जित करना है|
         भारत में पाठ्यपुस्तकों का इतिहास आते प्राचीन है पहले पुस्तको की संख्या बहुत कम तथा समुचित होती थी इस प्रकार छात्रों को प्राय शिक्षकों द्वारा केवल मोखिक शिक्षा ही दी जाती थी| कागज के आविष्कार के साथ ही  किताबों मुद्रा में काफी वृध्दि हुई तथा साथ ही साथ किताबों के मनचाहे आकर और आवश्यकतानुसार पुस्तको की प्रतिया छपना संभव हुआ तथा वृध्दि जीवी वर्ग इसकी और अधिक संख्या में आकर्षित हुए| कागज के अविष्कार के साथ मुद्रण कला में भी व्यापक प्रगति हुई|
         पाठ्यचर्या का प्रारूप के साथ-साथ पुस्तकों की रुपरेखा पर भी अधिक बल किया जाता है| पाठ्यचर्या के स्वरूप के लिए पाठ्यपुस्तकों की भी संतुति की जाती है उन पुस्तकों के अवलोकन से विभिन्न प्रकरणों का स्वरूप बोध शिक्षक तथा छात्रों से होता है|
         अत: अंत में यही कहा जा सकता है कि पाठ्यपुस्तकें ही हमारी शिक्षा का आधार प्रदान करती है तथा शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाने की और अग्रसर करती है|




पाठ्यपुस्तक का अर्थ
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में पाठ्यपुस्तक शिक्षण का प्रमुख आधार है| सभी विषयों की शिक्षा में पाठ्यपुस्तकों साधन और साध्य दोनों रूपों में प्रयुक्त की जाती है पुस्तकों द्वारा बच्चों के शब्द, सूक्ति, मुहावरे एंव लोकोक्ति भंडार में वृध्दि करने, उन्हें वर्ण विन्यास सिखाने, उच्चारण शुद्ध करना आदि द्वारा ही भाषा का विकास विभिन्न पहलुओं द्वारा किया जाता है|
    मुद्रण कल के विकास के कारण पुस्तकों के प्रकाशन में क्रांति आदि तथा शिक्षक पुस्तकों द्वारा शिक्षण को प्रमुख आधार प्रदान करते है पुस्तकों द्वारा छात्र सुनकर तथा स्वंय अध्ययन करके विषय का ज्ञान ग्रहण करते है|
         इसी प्रकार हम पुस्तक को एक निर्देशक के रूप में देखते है जो शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षण तथा छात्र दोनों का ही मार्ग-दर्शन करती है|
         पाठ्यपुस्तकें सम्पूर्ण शिक्षा प्रकिया के नियोजन एंव व्यवस्थित बनाए रखती है हम कहे सकते है कि वर्तमान विश्व व्यवस्था में अधितर विज्ञान का विकासवादी तथा परिवर्तनों को स्वीकार करने वाली है वह सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली पाठ्यपुस्तकों पर ही केन्द्रित है|
         हिंदी शिक्षण में भाषा के विकास महत्व आवश्यकता सभी के विकास में पाठ्यपुस्तक महत्वपूर्ण है|










पाठ्यपुस्तक की परिभाषा
पाठ्यपुस्तक एक मुद्रित कागज की बनी होती है जो बच्चों की आयु, कक्षा, विषय, व मानसिक स्तर के अनुसार बनाई जाती है| यह एक ऐसा यंत्र है जी निर्देशक साधन के रूप में बच्चों के व्यवहार में बदलाव लाती है तथ शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के यह यंत्र की तरह कार्य करती है|
         “यह सिखने का एक यंत्र है जो आमतोर पर (स्कूल या कॉलेजो) शिक्षण संस्थानों में जिसके द्वारा किसी पाठ्यसामग्री से सम्बन्धित कार्यो को पूरा करने के लिए आवश्यक है|”
         “पाठ्यपुस्तक एक मुद्रित न ख़त्म होने वाली हाई बोर्ड की बनी एक आदर्श-खोज है, निर्देशात्मक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए छात्रों के हाथ में दी जाती है|”
         यह एक निर्देशक, छपी, शिक्षक की लिए सहायक स्वरूप, छात्रों के हाथ में दी जाने वाली कागज की बनी अपने विषय के अनुसार सभी आवश्यक जानकारी लिए हुई होती है|


पाठ्यपुस्तक के कार्य
हिंदी पाठ्यपुस्तक के कई कार्य होते है जो एक भाषा के प्रति सही विचार तथा सही प्रकार से भाषा को प्रयुक्त करने में सहायक होते है तथा इसके द्वारा छात्रो में भाषा के प्रति सही उच्चारण शब्दिक त्रुटियां, शब्द, सूक्ति, मुहावरे एवं लोकोक्ति भंडार वर्ण विन्यास, उच्चारण शुद्ध करना आदि महत्वपूर्ण कार्य है|
·       ग्रहण करना-छात्र सुनकर तथा पढ़कर सीखते है पुस्तक द्वारा पढना सीखना|
·       भाषा के प्रति सही व्यवहार विकसित करना|
·       भाषा का विकास करना|
·       व्याकरण सम्बन्धित उचित शुद्धता का विकास करना|
·       भाषा के प्रति रचनात्मकता का विकास करना|
·       रूचि का विकास करना भाषा के प्रति अभिव्यक्ता का विकास करना जिसके द्वारा साहित्यिक रचना के माध्यम से छात्रों में प्रेम श्रद्धा, सह्दयता, आस्था, राष्ट्रीय एकता आदि का विकास करना|
·       समीक्षात्मक द्रष्टिकोण का विकास करना|
अत; हिंदी शिक्षण द्वारा छात्र में भाषा के प्रति उचित द्रष्टिकोण का विकास करना होता है|
पाठ्यपुस्तक का चयन
हिंदी भाषा की शिक्षा में पाठ्यपुस्तकें एक सशक्त माध्यम के रूप में प्रयुक्त की जाती है भाषा सम्बन्धी विभिन्न कोशालों को विकसित करने में पाठ्यपुस्तक की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है|
         विधालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर पाठ्यपुस्तकों का चुनाव बहुत ही सावधानीपूर्वक करना आवश्यक है|
·       पाठ्यपुस्तक का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि पाठ्यपुस्तक छात्रों को मानसिक स्तर के अनुकूल हों|
·       छात्रों में भाषायी ज्ञान में क्रमबद्ध व्रद्धि करने वाली हों|
·       छात्रो के उचित शब्दावली एवं भाषा का प्रयोग कर प्रभावशाली ढग से विचरों को अभिव्यक्त कर सके|
·       उनके विचरों में पूर्णता हो तथा पुस्तक विभिन्न प्रकार के ज्ञान-विज्ञान का समावेश हों|
·       विषय के अनुसार पुस्तक में उसकी विशेताओं को डालना तथा ध्यान में रखना|
·       पाठ्यपुस्तक की सभी विशेताओं की जाँच व् मापन करने के पश्चात् उसका चयन करना|
अत: पाठ्यपुस्तक का चयन अत्यधिक सावधानीपूर्वक सभी बातों को ध्यान में रखकर तथा मुल्यांक, मापन कर के किया जाना अत्यधिक आवश्यक होता है|









पाठ्यपुस्तक के अंग
पाठ्यपुस्तक के अंग इस प्रकार है:-
प्राम्भिक बिंदु
  i.      शीर्षक:- यह सारगर्मित होना चाहिए|
ii.      लेखक:- लेखक या लेखक मंडल का नाम अवश्य मुद्रित होता है लेखन की जानकारी इत्यादि|
iii.      प्रकाशन:- पुस्तक के प्रकाशन करने वाले प्रकाशक की जानकारी देती रहती है लिखी होती है|
iv.      भूमिका:- यह पुस्तक का मुख्य भाग है इसमें पुस्तक की सम्पूर्ण भूमिका लिखी होती है|
v.      सूची:- यह अभिन्न अंग है पुस्तक का इसमें क्रमानुसार सभी पाठो तथा विषय सूची की जानकारी होती है जैसे प्रष्ठ |
आंतरिक पक्ष
 i.      चित्र:- चित्र आवश्यक व पाठ से सम्बन्धित तथा आकर्षक होना चाहिए|
ii.      शब्द भंडार:- पाठ में आए शब्दों के अर्थ का भंडार आवश्य होना चाहिए|
iii.      वाक्य संरचना:- स्कूल के स्तर तथा कक्षा के स्तर के आनुरूप होने चाहिए |
iv.      पाठ:- पाठ की संख्या, लम्बाई, प्रष्ठ संख्या का ध्यान रखना चाहिए | छात्रा के स्तर के अनुरूप हो |
v.      अभ्यास:- अभ्यास सही प्रकार होना चाहिए | अभ्यासों की संख्या तथा भाषा-कोशल सटीक हो |











पाठ्यपुस्तक लिखने के सोपान
    पुस्तक लेखन एक रचनात्मक सृजनात्मक कार्य है हमे पाठ्यपुस्तकों की आवश्यकता होती है तथा निर्माण की द्रष्टि से दो रूप है:-
    प्रचलित व परम्परागत पाठ्यपुस्तकों|
    अभिक्रमिक तथा नविन प्रकार की पाठ्यपुस्तकें|
प्रथम सोपान : पुस्तक हेतु नियोजन
·      पाठ्यपुस्तक विश्लेषण:- पहले से मोजूद पुस्तकों का विश्लेषण |
·      पाठ्यपुस्तक का स्वरूप:- विश्लेषण के पश्चात विभिन्न अनुभवों द्वारा पुस्तक का प्रारूप तैयार करना |
दिवतीय सोपान : पाठ्यपुस्तक तथा अध्यायों को लिखना
आधुनिक परम्परा यह है कि पुस्तक के प्रारूप में पहले उद्देश्यों को लिखा जाता है, उसके पश्चात पाठ्यपुस्तक को इकाईयों में प्रस्तुत किया जाता है पुस्तक के अध्यायों को आरम्भ करने से उद्देश्यों को व्यवहारिक रूप में एक क्रम में लिखते है |
   पुस्तक के प्रकरणों, शीर्षकों, प्रसंगों तथा उपशीर्षको में सहायता में प्र्स्तुतकरण में होना चाहिए |
तृतीय सोपान : पाठ्यपुस्तक के प्रस्तुतिकरण का जाँच करना
·      पाठ्यवस्तु की शुद्धता एवं व्यवस्था – इस प्रकार की जाँच |













पाठ्यपुस्तक के प्रकार
छात्रों के प्रदत्त ज्ञान को सुनियोजित रूप से प्रढत्त करने के लिए, प्रस्तुत करने, पुनवर्तन करने, ज्ञान के अतिरिक्त स्रोत उपलब्ध कराने तथा उसे जीवनोपयोगी बनाने के लिए पाठ्यपुस्तक के दो भागों में विभाजित किया जा सकता है |
·      गहन अध्ययन:- गहन अध्ययन या सूक्ष्म अध्ययन हेतु निर्धारित पाठ्यपुस्तकों होती है | इसमें विशिष्ठ उद्देश्य, सूक्ष्म भाव , विचार , नवीन शब्द , वाक्य संरचना , मुहावरे , लोकोकितायां तथा व्याकरण संबंधित पक्षों पर विशेष बल दिया जाता है |
·      सहायक पुस्तक :- सहायक पुस्तक को प्रव्यवाचन की पुस्तक भी कहा जाता है इसमें छात्रो को शब्दों को समझाना व भावों की व्याख्या करना सिखाया जाता है इसके अतिरिक्त छात्रो को तीव्र गति से वाचन का अभ्यास करना भी इसके अंतर्गत सम्मिलित है |
·      पाठ्यपुस्तक की विषयवस्तु के आधार :- बालक का वातावरण मानसिक विकास रुचिया , वर्तमान व भावी आवश्यकताए  पठन संदर्भो की विविधता साहित्यिक विधाओ का प्रतिपाठन ,संतुलित व्यक्ति का विकास , उपयोगी नागरिक बनाना इत्यादि |
पाठ्यपुस्तक के लाभ
पाठ्यपुस्तकें हमारे लिए मुद्रण कला का अमूल्य उपहार है जो हमारे पूर्वजो के ज्ञान अनुभव , रहन – सहन , भाष शैली , समाज की व्यवस्था , विकास , भाषा से सम्बन्धित उतार – चढ़ाव , सम्बन्धित ज्ञान को हम तक पहुंचने का विशिष्ट कार्य करती है |
“हैरोलिकर” :- “पाठ्यपुस्तक ज्ञान , अनुभवों , भावनाओं , विचारों , प्रव्रत्तियों तथा मूल्यों के संचय का साधन है |
·      अध्ययन के लिए :- अध्यापक पाठ्यवस्तु की सहायता से ही अपनी शिक्षण प्रक्रिया का नियोजन करता है और उसी के आधार पर शिक्षण का कियान्वयन करता है |
·      विधार्थियों के लिए :- शिक्षण द्वारा शिक्षण प्रक्रिया में , कक्षा में सुनकर पढकर , स्वंय अध्ययन के पश्चात् ज्ञान ग्रहण करना |
·      शिक्षण प्रणाली के लिए :- पाठ्यपुस्तक द्वारा केवल हिंदी ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण शिक्षण प्रणाली , सभी विषयों के लिए आवश्क है | पाठ्यपुस्तक के द्वारा शिक्षण के स्तर में समानता बनी रहती है | रूप समान स्तर के के कारण छात्रों के मुल्यांकन करने तथा आगे की कक्षाओ में अध्ययन की व्यवस्था करने में सहायक करती है |
·      समाज के प्रति :- समाज के विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है | समाज में सभी व्यक्ति अपने विचारो का आदान – प्रदान भाषा द्वारा करती है |
पाठ्यपुस्तक के दोष
पाठ्यपुस्तक के कुछ दोष अवश्य होते है . जैसे की कोई भी वस्तु पूर्व नहीं होती उसमे गुण दोष दोनों होते है |
   i.        इसके तैयार करने में लेखन तथा प्रकाश का उद्देश्य धनोपार्जन करने होता है अत: वे पुस्तक छात्रों के विभिन्न स्तरों की पूर्ति के लिए तैयार करता है |
ii.        प्राय: रददी कागज अनाकर्षक छपाई और आकर्षक जिल्द का उअपयोग किया जाता है |
iii.        इसकी साज – सज्जा छात्रों को आकर्षित नहीं कर पाती है |
iv.        ये ज्ञान को जीवन से सम्बंधित करके प्रस्तुत करती है |
 v.        पुस्तक में राष्ट्रीय एकता की भावना और अंतर्राष्ट्रीय सदभावना पूर्ण आभाव है |
vi.        पुस्तके तैयार करते समय शिक्षण विधियों के आधार नहीं बनाया जाता |



उपयोगिता
निसंदेह पाठ्य-पुस्तक बालकों के शिक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण एवं उपयोगी साधन है | विशेषत: भारत के लिए जहाँ अनेक माता – पिता अपने बच्चों के लिए पाठ्यपुस्तक के अतिरिक्त एक भी दूसरी पुस्तक खरीदने में असमर्थ है | यह बात और भी सत्य है यधपि पाठ्यपुस्तक केबल साधन है , साध्य नहीं यधपि उसका महत्व कम नहीं है | सुनियोजित रूप में तैयार की गई अच्छी पाठ्यपुस्तक को बालकों की शिक्षा तथा राष्ट्रीय एंव राष्ट्र निवासियों के भाग्य निर्माण में निश्चित ही बहुत महत्वपूर्ण है |
    पाठ्यपुस्तक सामान्य पुस्तकों से भिन्न होता है | पाठ्य-पुस्तक शैक्षणिक उद्देश्य एवं कक्षा शिक्षण की द्रष्टि से उपयुक्त सामग्री का चयन और क्रमयोपन करते हुए जिस पुस्तक की रचना की जाती है उसे पाठ्यपुस्तक कहते है | शिक्षा प्रदान करने की परंपरागत प्रणाली तथा आपको आधुनिक प्रणाली , दोनों ही पुस्तक पर आधारित है | इसी कारण पाठ्यपुस्तकों की आवश्यकता एवं उपयोगिता सभी स्वीकार करते है |
उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन है :-
   i.        पाठ्यपुस्तक कक्षा में जाने से पूर्व विषय तैयार करने में अध्यापक तथा छात्रों दोनों की सहायता करती है |
ii.        पाठ्यपुस्तक विषयों को दोहराने में सहायक करती है |
iii.        पाठ्यपुस्तक की सहायता से अनेक छात्रों को एक साथ पढाया जा सकता है |
iv.        अध्याय की आदत विकसित करने में सहायता देती है |
 v.        अध्यापक व छात्रों दोनों के समय व शावते का बचत होती है |
vi.        छात्रो को ग्रह कार्य करने में तथा देने में अध्यापक की सहायता करती है |
vii.        पाठ्यपुस्तको अवकाश के समय का सदुपयोग करती है |






विशेषताएँ
पाठ्यपुस्तक में ही विचारों की पूर्णता ही चाहिए क्योंकि यह ज्ञान का समावेश होती है यह एक सशक्त माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती है पाठ्यपुस्तक के चयन में थोड़ी सी असावधानी या पक्षपात छात्रों में भाषायी कोशल के विकसित करने में एक प्रमुख बाधा बन सकती है |
    चयनकर्ता को एक अच्छी पाठ्यपुस्तक निहित सभी विशेषताओं की जाँच व मापन करने के पश्चात् ही पाठ्यपुस्तक का चुनाव करना चाहिए इस प्रकार है |
    पाठ्यपुस्तक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ओजार होता था |
पाठ्यपुस्तक की विशेषताएँ
·     आंतरिक गुण या आंतरिक विशेषताएँ :- हिंदी भाषा की पाठ्यपुस्तक में निम्नलिखित आंरिक गुण या विशेषताएँ होनी चाहिए :-
                    i.        पाठ्यपुस्तक की भाषा छात्रों के स्तर के अनुकूलन होनी चाहिए | किसी भी स्थिति में पाठ्यपुस्तक की भाषा इतनी विलष्ट होनी चाहिए की छात्र उसे समझ ही ना सके |
                 ii.        भाषा व्याकरण की द्रष्टि से शुध्द होनी चाहिए |
               iii.        भाषा सरल व सुबोध होनी चाहिए |
               iv.        पाठ्यपुस्तक की भाषा ऐसी होकी सरल से कठिन व ज्ञान से अज्ञान के क्रम में छात्रों का शब्द एक सूक्ति-भंडार विकसित हो |
·       शैली :- पाठ्यपुस्तक की लेखन शैली भी पाठ्यपुस्तक को आकर्षक बनाने में सहायक होती हैशैली की प्राप्ति से निम्न बातो को ध्यान देने योग्य है | 
                    i.        पाठ्यपुस्तक की शैली छात्रो के स्तरानुकुल होनी चाहिए |
                 ii.        पाठ्यपुस्तक की शैली में विविधता होनी चाहिए | इसमें पाठ्यपुस्तक में एकरसता पर हो जाती है |
               iii.        शैली में माधुर्य , ओज एवं प्रसाद गुण आवश्यक हो |
               iv.        शैलियों में संतुलन भी रचना चाहिए |
·       व्याख्या एवं सामग्री :- पाठ्यपुस्तक की सामग्री के प्रत्येक पाठ में कुछ नवीन शब्द अवन वाक्वंश प्रयुक्त होती है जिसकी व्याख्या करना आवश्क होता है |
                    i.        प्रत्येक पाठ के अंत में या पुस्तक के अंत में पाठों के क्रमकसार उन पाठो में आए कठिन शब्दों ,सूक्तियो तथा मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करना चाहिए |
                 ii.        शब्दों को व्याख्या के साथ-साथ पाठ में आए नवीन नामों, वस्तुओ , स्थानों एंव तथ्यों आदि को टिप्पणी देकर स्पष्ट करनी चाहिए |
               iii.        पाठ में आए पारिभाषिक  शब्दों को स्पष्ट करना चाहिए |
·       चित्र :- बच्चों चित्र देखने में बहुत रूचि लेते है अंत प्रत्येक पाठ में पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित श्वेत-श्याम या रंगीन चित्र का भी समावेश करना चाहिए |
·       अभ्यासार्थ प्रश्न :- प्रत्येक पाठ के अंत में अभ्यास करने के लिए विभिन्न प्रकार के वस्तुपरक , लघु-उत्तर एवं निश्न्धात्मक प्रश्न दिए जाने चाहिए | इससे छात्र पाठ को पढ़ने के उपरांत अपना मुल्यांकन कर सकेंगे पाठ को दोहराने में भी सहायता मिलेगी |
·       विषय सूची :- पाठ्यपुस्तक के आरम्भ में विषय-सूची दी जानी चाहिए , जिसमे पाठ का शीर्षक , लेखन का नाम , तथा पाठ्य संख्या दी हुई है इससे छात्रों को पाठ ढूंढने में सुविधा हो जाती है |
बाह्य गुण या विशेषताएँ
पाठ्यपुस्तक का बाह्य आकर रंगीन रूप एंव सजा हुआ बच्चों को अपनी और आकर्षित करती है | उसकी विषयवस्तु कितनी भी रुचिकर क्यों ना हो , यदि बाह्य रूप आकर्षत नहीं तो बच्चो का मन पुस्तक पढने के लिए प्रव्रत्व नहीं होता है बाह्य आकर्षण ही छात्रो को पुस्तक पढ़ने के लिए प्रव्रत्व करता है
       i.      मुखपृष्ठ :- पाठ्यपुस्तक का आवरण या मुख्य प्रष्ट आकर्षण एवं रंगीन होना चाहिए | उस पर विषय से सम्बन्धित कोई चित्र बना होना चाहिए | जैसे भाषा की पाठ्यपुस्तक पर बच्चे और पुस्तक या लेखनी का चित्र, कमल का फूल चित्र आदि |आवरण प्रष्ठ मजबूत होना चाहिए | आवरण प्रष्ठ ही पुस्तक को सुरक्षित रखता है | आवरण प्रष्ठ के फटते ही पूरी पुस्तक विक्रत होने लगती है |
    ii.      पाठ्यपुस्तक का शीर्षक आकर्षक होना चाहिए यह छोटा एंव साहित्यक होना चाहिए |
 iii.      पाठ्यपुस्तक का कागज अच्छा व मजबूत होना चाहिए |




पुस्तक का प्रयोग
पाठ्यपुस्तक का प्रयोग करना भी एक कला है यदि अध्यापक पाठ्यपुस्तक को सावधानी से नहीं करते तो लाभ होने की बजाए हानि होने की संभावना अधिक रहती है | निम्नलिखित ध्यान रखना चाहिए प्रयोग पर :-
    i.        छात्रो की आयु तथा उसके मानसिक स्तर पर अवश्य ध्यान देना चाहिए मोखिक शिक्षण का प्रथम महत्व देनी चाहिए |
 ii.        पाठ्यपुस्तक के विषयों पाठो को सीमा में नहीं बंधना चाहिए | पाठो को अन्य विषयों से सम्बन्धित करके पढ़ना चाहिए समन्वय का सिध्दान का प्रयोग करना चाहिए |
iii.        कक्षा अध्यापक में पाठ्यपुस्तकों का प्रयोग करते समय प्रश्नोत्तर प्रणाली का प्रयोग करते रहना चाहिए |






पाठ्यपुस्तक का महत्व
शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा पाठ्यपुस्तकों का अर्थ भोत महत्वपूर्ण है | वे छात्रो एंव अध्यापक दोनों के लिए उपयोग होती है | इसलिए हिंदी विषय के लिए पाठ्यपुस्तकों का बहुत महत्व है वो यह है :-
 i.      ज्ञान का स्रोत :- पाठ्यपुस्तक हिंदी विषय से सम्बन्धित विषय सामग्री का ज्ञान प्रदान करती है | यह विभिन्न स्रोतों से एकत्रित पाठ्यपुस्तक को संश्लेषित पुस्तक करती है | यह विद्वानों द्वरा किये गये कार्य का ज्ञान एकत्रित करके संगठित करती है |
ii.      स्तरीय शिक्षण के लिए आवश्क :- पाठ्यपुस्तके तर्क संगम और बोधगम्य तो होती है , साथ ही उस न्यूनतम स्तर को भी निधारित करती है जिस छात्रो को प्राप्त करना है | यह विशिष्ट अनुभवों का बोध्दिक भंडार होती है |







पुस्तक लेखन  के  सिध्दान्त
पुस्तक  का  लेखन एक  रचनात्मक  तथा  सर्जनात्मक  कार्य  माना जाता  है  पुस्तक के  लिखने  परपारि  तोषीक  भी दिये जाते है  सामाजिक  योगदान  माना  जाता  है पुस्तकों  की  रचना  एंव प्रकाशन  इन बातो  को ध्यान  में  रखकर  करनी  चाहिए |
·       पुस्तक  का  प्रारुप  विशिष्ट  होता  है  जिस  स्तर के  छात्र  के  लिये  पुस्तक  लिखी  जाए उनके  मानसिक  विकास  के  अनुरूप  होना  चाहिये|
·       पुस्तकों  की  रचना  मे शिक्षा  और पाठ्यक्रम के  उद्देश्यकों  भी  ध्यान  मे  रखना  चाहिए  प्राथमिक  स्तर पर ज्ञान स्म्रति तथा कोशल की विकास उद्देश्यों को माध्यमिक स्तर पर बोध , ज्ञान प्रयोग तथा अभिरुचियों के विकास को तथा उच्च स्तर पर विश्लेषण मुल्यांकन तथा सोंद्र्यनुभुति उद्देश्यों को महत्व दिया जाना चाहिए |
























पाठ 1
वह चिड़िया जो
' वह चिड़िया जो ' कविता ' केदारनाथ अग्रवाल ' द्वारा रचित है। जिसमें उन्होंने एक छोटी चिड़िया के बारे में बात की है।
प्रस्तुत कविता में एक छोटी चिड़िया क्या-क्या करती है उसका वर्णन किया है। दाने बड़ी रुचि से खाती है।छोटी चिड़िया नीले पंखों वाली है।चिड़िया अपना जीवन प्रेम , उमंग और संतोष से जीती है।वह गाते और उड़ते हुए अपना पूरा जीवन जीती है।
चिड़िया के माध्यम से कवि खुशी से जीने का संदेश देता है कवि कहना चाहता है कि हमें थोड़े में ही सतोष करना सीखना चाहिए ।अधिक की लालसा नहीँ रखनी चाहिए इस कविता में अकेले रहकर भी उमंग से जीने का संदेश दिया गया है। इसके साथ ही कवि हमें बताते है कि विपरित परिस्थितियों में भी हमें साहस नहीँ खोना चाहिये।

                                                




            



            पाठ2 - बचपन


" बचपन " कहानी कृष्णा सोबती स्वयं द्वारा रचित संस्मरण है ।जिसमें उन्होंने अपने बचपन की यादों को पाठक के सामने रखा है।
प्रस्तुत कहानी मात्र कृष्णा के बचपन की घटनाओं की ही नहीं अपितु बचपन के महत्व और उन छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन है जो कि बड़े होने पर अर्थहिन होने की अपेक्षा जीवन के महत्वपूर्ण पल बन जाते है।
लेखिका ने अपने से आज के समय की दूरी को दृशाया है।बचपन की घटनाओँ का मनुष्य के व्यक्तित्व पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।' चने ज़ोर गरम' और अनारदानेका चूर्ण' जैसै शब्दों का प्रयोग कर रचियता ने बच्चों का पाठ से जुड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।










                       पाठ-3 नादान दोस्त

हिंदी साहित्य के सम्राट " प्रेमचंद" जी के द्वारा रचित कहानी ' नादान दोस्त ' बहुत ही दिलचस्प रचना है।
प्रस्तुत अध्याय में प्रेमचंद जी ने बच्चों के मासूम हृदय को चित्रित किया है।
जिसमें भाई-बहन एक घोंसला देख उत्सुक हो जाते हैं और घोंसले में रखे अंडे की सुरक्षा प्रदान करने के कारण छू लेते है। चिड़िया द्वारा अंडे गिराए जाने पर वह दुखी हो जाते है।
प्रेमचंद जी ने इस कहानी में एक गुढ़ अर्थ भी दिया है।जिसके द्वारा यह कहा जा सकता है कि जिस कार्य के बारे में पता हो उसके बारे में जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।








                          




पाठ-4                                                                                                                                                चाँद से थोड़ी-सी गप्पें

शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित प्रस्तुत कविता ' चाँद से थोड़ी-सी गप्पें ' में बच्चें द्वारा चाँद से बातें बनाई गई है।
यह कविता कल्पित है।इस कविता में एक ग्यारह साल की लड़की रात के समय चाँद से बातें करती है।चाँद के बढ़ने घटने को एक खेल की तरह समझती है।
प्रस्तुत कविता में भाषा को बेहद ही सरल रखा गया है और वार्तालाप स्पष्ट सजीव जान पड़ता है।
अतप्रस्तुत अध्याय को देखा जाए तो इसमें कविता के माध्यम से चाँद के बढ़ने,घटने स्वरूप आदि के साथ-साथ हिन्दी अंग्रज़ी कैलेंडर की भी जानकारी दी गई है।




        








           


     


        पाठ-5 अक्षरो का महत्व

' गुणाकर मुले ' द्वारा रचित अध्याय
'अक्षरों का महत्व ' में लेखक ने लेखन कौशल का महत्व दिया है।
सभी लोग भाषा के लिखित स्वरूप का प्रयोग तो करते है परंतु लेखन किस तरह से प्रारंभ हुआ उसका स्वरूप , आरंभ में किस तरह परिवर्तन आता चला गया।
मनुष्य को लेखन की आवश्यकता क्यों पड़ी तथा लेखन प्रणाली ने मनुष्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रस्तुत अध्याय में लेखन कला से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियों को रोचक ढंग से प्रस्तुत कर रहा है।

                          







                        

                                          
                     पाठ-6  पार नज़र के

" पार नज़र के " नामक यह अध्याय ' जयंत विष्णु नार्लीकर ' की रचना है।जिसका मराठी में अनुवाद
" रेखा देशपांडे " ने किया है।
इस पाठ में छोटू नामक लड़का है जो उस दरवाज़े के पीछे जाना चाहता है।एक दिन वह अपने पापा से नज़र बचाकर सिक्योरिटी-पास लेकर सुरंग में चला गया और सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया।वह उसे घर छोड़ाए।
उसके पापा बताते है वहाँ जाने के लिए स्पेस सूट
 पहनना पड़ता.है।
इस अध्याय में छोटू के पापा उसे स्पस के बारे में बताते है
                            











                             पाठ-7
                        साथी हाथ बढ़ाना

" साथी हाथ बढ़ाना  " नामक गीत 'साहिर लुधियानवी' की रचना है।जिसमें हर आदमी दूसरों के काम में हाथ बढ़ाता हैं।
इस कविता में कवि कहते है कि सभी को एक साथ मिलकर काम करने से कोई भी काम कठिन नहीं लगता

 पाठ-8
ऐसे-ऐसे:-
ऐसे-ऐसेनामक यह अध्यय विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित हैं। इस अध्यय मे एकांकी का रूप हैं।
       इस अध्यय मे : पात्र हैं वो है
       1. मोहन,
       2. दीनानाथ,
       3. मोहन की माँ,
       4. मोहन के पिता,
       5. मास्टर,
       6. डॉक्टर।
इस एकांकी में मोहन पेट में दर्द होने की बात कहता है कि मेरे पेट में ऐसे-ऐसे हो रहा है। डॉक्टर को भी कुछ समझ नहीं आता कि आखिर हो क्या रहा है। पर मोहन के मास्टर जी को पता चल जाता है, कि स्कूल का काम पूरा होने पर अक्सर बच्चों को ये ऐसे-ऐसे की बिमारी होती है।
इस अध्यय में एक बच्चे की उस परिस्थितियों को बताया गया है कि जब स्कूल का काम पूरा नहीं होता या स्कूल जाने का मन नहीं करता तब वो पेट दर्द या सर दर्द आदि का बहाना बनाते हैं।


                                     पाठ-9

टिकट अलबम:-
टिकट अलबम नामक यह अध्यय सुंदरा रामस्वामी द्वारा रचित हैं। जिसका तमिल से हिंदी मे अनुवाद सुमित अय्यर द्वारा किया गया है।
इस अध्यय में मुख्य पात्र दो है।
           1. राजप्पा
           2. नागराजन
इस अध्यय में राजप्पा और नागरनज दो बच्चों की कहानी है जिन्हें विभिन्न प्रकार की टिकटों को इकट्ठा करने का शौक था परन्तु राजप्पा नागराजन को टिकट अलबम के ज्यादा अच्छा होने तथा अपनी टिकट अलबम महत्व के बारे में जाने के कारण जलन ईर्ष्या के कारण नागराजन की टिकट अलबम चुरा कर जला देता है। पर इस अपराध की आत्मगीलानी होने पर अपनी टिकट अलबम उसे देदेता है।
प्रस्तुत पाठ द्वारा बच्चों को टिकटों के बारे मे जानकारी अन्य सृजनात्मक कार्यों को प्रेरित किया गया है। तथा यह भी सीखाया गया है कि हमें दूसरों की खुशी चीजों से ईर्ष्या नही चाहिए।



                                                                पाठ-10
                                झाँसी की रानी:-
सुभदरा कुमारी चौहान द्वारा रचित यह कविता झाँसी की रानीएक ओजस्वी कविता है।
  प्रस्तुत कविता में कवित्री ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की परिस्थितियों का सजीव चित्रण किया है। जिसमें रानी लक्ष्मीबाई को केंद्र में रखकर रचना की गई है।
इस प्रकार की कविता बच्चों के हृदय में देशभक्ति की भावना जागृत करती है।
प्रस्तुत कविता द्वारा कवित्री ने देश के प्रति त्याग एवं प्रेम की देवी रानी लक्ष्मीबाई तथा सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को ओजस्वी भाषा में चित्रण किया है।








                                                            पाठ-11

                                   जो देखकर भी नहीं देखते:-
हेलेन केलर द्वारा रचित यह अध्यय जो देखकर भी नहीं देखते में मनुष्य की असीम इच्छाशक्ति को प्रदर्शित कर रहा है।
                   प्रस्तुत अध्यय में लेखिका द्वारा यह बताया गया है कि देखने के लिए आँखों की आवश्यकता होती है परंतु इन्हें हम अपने मन द्वारा महसूस कर सकते हैं।
इस अध्यय की विशिष्टता यह है कि इस अध्यय में लेखिका हेलेन केलर दृष्टिहीन होने के बावजूद भी उन्होंने एक उच्च स्थान प्राप्त किया है जिसके द्वारा वे स्वयं को दूसरों के लिए प्रेरणा का एक स्त्रोत बनी।
        प्रस्तुत अध्यय बच्चों में लेखिका की तरह आगे बढ़ने के लिए प्ररित करती है।




                                           पाठ-12


                                      संसार पुस्तक हैं:-
संसार पुस्तक हैं अध्यय मात्र एक अध्यय नही है अपितु इससे भी अधिक शुद्ध अर्थ रखता है।
       यह एक पत्र है जोजवाहरलाल नेहरू ने अपनी बेटीइंदिरा गाँधी को लिखो थे, इसमें बताया गया है कि पृथ्वी की शुरूआत कैसे हुई और मनुष्य ने अपने- आप को कैसे धीरे-धीरे समझा।
ये चिठ्ठीयाँ बच्चों मे अपने आस-पास क् जीवन के बीरे मे सोचने, ुस पर विचार करने, और जानने की उत्सुकता को बढ़ाती है।
         ये सभी चिठ्ठियांपिता के पत्र पुत्री के नाम पुस्तक में सम्मिलित हैं।संसार पुस्तक हैं इस पुस्तक मे साभार किया गया है। खास बात यह है कि ये पत्र नेहरू जी ने अंग्रेजी भाषा में लिखे थे, और उनका हिंदी मे अनुवाद हिंदी केमशहूर उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की ने किया है।
         प्रस्तुत अध्यय एक पिता पुत्री के माध्य पत्र व्यवहार को प्रदर्शित करते हैं,तथा पत्र के महत्व को भी दर्शाता है।



                  






               पाठ-13
मैं सबसे छोटी होऊँ:-
मैं सबसे छोटी होऊँ कविता सुमित्रा नंदन पंत जी द्वारा रचित हैं। इस कविता मे जो लड़की है वह हमेशा छोटी रहना चाहती है।
     इस कविता में कवित्री छोटी रहना चाहती है ताकि वह हमेशा अपनी माँ के करीब रह सके। क्योंकि उसे लगता है कि बड़े होने के बाद माँ हमसे कम प्यार करती हैं
हमारे साथ खेलती नही है, और ना ही हमें गोद में खिलायेगी तो इसलिए वह बड़ी नही होना चाहती।
        इस कविता में लड़की बड़ी नहीं होना चाहती माँ के प्यार को नहीं खोना चाहती। इस कविता से बच्चों मे माँ के प्रति प्यार को दर्शाया गया है।







                                                                 पाठ-14
लोकगीत:-
लोकगीतनामक निबंधभगवतशरण उपाध्यायद्वारा रचित हैं। इस निबंध में लोकगीत क्या होते है इसके बारे मे बताया गया है।
                 लोकगीत को जनता का संगीत कहा जाता है। जो घर गाँव और नगर की जनता के गीत है। ये सभी स्त्रियों आदमी के द्वारा समूह में गाए जाते है। सभी लोगों का मनोरंजन का साधन ये गीत है। ये गीत शादियो में, जन्मदिवस, पुजा, आदि के गीत होते है ये हर राज्य के लोग अपनी अपनी भाषा मे गाते है। हीर राझा सोनी महीवाली संबंधी गीत पंजाब में गाए जाते है।
    
             इस अध्यय मे लोकगीत की चर्चा एक अच्छे ढंग से की गई है।









                पाठ-15                              नौकर
प्रस्तुत अध्ययनौकरकी लेखिकाअनु बंधु उपाध्यायस्वतंत्रता आंदोलन के साथ साथ सामाजिक कार्यों में भी गाँधी जी की सहयोगी बनीं रही।
     इस अध्याय में गाँधी जी से जुड़े कुछ प्रसंगों का वर्णन किया गया है, जिसमें गाँधी जी का बच्चों से प्रेम, कर्तव्य, काम, के प्रति ललक आदि के गुणों का पता चलता है।
गाँधी जी अपने से बड़ों का आदर करते थे तथा बहुत मना करने पर भी गोखिले जी के पैर दबाते थे।
        गाँधी जी छुआछुत को बुरा मानते थे। उनका कहना था कि नौकर को हमें वेतनभोगी नहीं अपितु अपने भाई के समान मनाना चाहिए। एक प्रसंग में यह भी बताया गया है कि जब गाँधी जी एक भारतीय सज्जन के घर कुछ समय का आतिथ्य गहण करके विदा लेते समय उन्होंने नौकरो को कह दिया कि आप लोगों को मैनेसदा अपने भाईयो की तरह समझा है तथा अपने जो मेरी सेवा की इसका प्रतिदान देने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है  लेकिन ईश्वर आपको इसका पुरा फल देगा।



                                                          पाठ-16
                                                   वन के मार्ग में
     यह अध्यायतुलसीदासद्वारा रचित सवैया है।
             इस पाठ में राम सीता लक्ष्मण के वन में जाने रास्ता में होने वाली कठिनाइयों का वजरन किया जाता है। सीता जी रास्ते में चलते चलते थक गई है वह राम जी से कुछ कह रही है कि वह कहाँ पर्व कुटि बनाएँगे। रास्ते में उन्हें  प्याल लगती है वे लक्ष्मण को पानी लाने के लिए भेजते है। सीता की थकावट को दुर करने के लिए राम उन्हें वही कुछ देर आराम करने को कहते है।
        इस अध्याय को रामरचित मानस में से लिया गया है। जो कि तुलसीदास की रचना
                                                                                                    

         पाठ-17
साँस साँस में बाँस
   प्रस्तुत पाठसाँस साँस में बाँस” “इलेकस एम जार्जकी रचना है। जिससकी अनुवाद राशि सब लोक दृश्य किया गया है। इस पाठ द्वारा बाँस से संबंधित जानकारी दी गई है। तथा बाँस का हमारे जीवन में महत्व बनाया गया है।
       बाँस का प्रयोग कलात्मक वस्तुओं में भी होने लगा है। बाँस से बनने वाली वस्तुएँ जैसे, टोपियां, टोकरीयां,बर्तन, बैल गाड़ियाँ, फर्नीचर, सजावटी समान, जाल, मकान, पुल और खिलौने आदि समान बनाएँ जाते हैं।
   बाँस की बनाई अन्य बुराइयों की तरह ही होती है तथा विभिन्न रंगों के द्वारा इसका बहुत ही सुंदर प्रयोग किया जाता है। प्रस्तुत पाठ बच्चों को बाँस के उपयोग महत्व को दर्शाता है। जिसे बच्चे अपने वास्तविक जीवन से भी संबोधित कर सकते हैं।





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