EDUCATIONAL AUTOBIOGRAPHY
INSTITUTEOF VOCATIONAL STUDIES
AWADH CENTRE OF EDUCATION
(Affiliated by Guru Gobind Singh Indraprastha University)
BACHELOR OF EDUCATION (B.Ed.) PROGRAMME
SESSION- 2016– 2018
UNDERSTANDING
THE SELF-155
NAME: AMJAD HUSSAIN
R.NO.00513902116
EDUCATIONAL AUTOBIOGRAPHY
मेरा नाम अमजद
हुसैन
है।
मैं
अपनी
शिच्छा
का
अनुभव
शेयर
करना
चाहता
हूँ।
शुरूआती
शिच्छा
मेरी
उर्दू
की
थी।
पहले
मैंने
उर्दू
की
पढाई
की उसके बाद
फिर
मेरा
दाखिला
हिंदी
स्कूल
में
हुआ
।
जब
मेरा
दाखिला
हिंदी
में
कराया
मेरे
माता
पिता
ने
तो
शुरुआत
में
मेरा
मन
बिलकुल
नहीं
लगता
था
।क्योंकि
यह
मेरे
लिए
बिलकुल
अलग
था
।
मेरे उम्र भी
ज्यादा
हो
गयी
थी
।
जो
बच्चे
मेरे
साथ
पढ़ते
थे
वो
हाइट
में
मुझसे
छोटे
थे
।
वो
उम्र
में
भी
मुझसे
छोटे
थे।
पहले
साल
मैंने 1 क्लास
की
पढाई
की
उसके
बाद
मेरा
दाखिला 3 क्लास
में
करा
दिया
था
घर
वालों
ने
क्योंकि
मेरी
उम्र
और
हाइट
भी
ज्यादा
हो
गयी
थी
। 3 क्लास
के
बाद
मेरा
दाखिला 5 क्लास
में
हुआ
।
जब
मैं 5 क्लास
में
था
तो
मुझे
बहुत
परेशानी
होती
थी
।
गरीब
परिवार
का
होने
के
कारण मेरी शरू
की
पढाई
एक
सरकारी
स्कूल
की
थी।।
मुझे अंग्रेजी भाषा
को
लेकर
बहुत
परेशानी
का
सामना
करना
पड़ा
।
जब
मैं 5 क्लास
में
पास
हो
गया
तो
मेरे
परिवार
वालों
ने
सोचा
की
मेरा
दाखिल
डेल्ही
में
करा
दिया
जाये।
क्योंकि
उस
समय
मेरे
पिता
जी
डेल्ही
में
काम
करते
थे
।
उन्होंने
मुझे
डेल्ही
बुला
लिया
और
यहाँ
पर
मेरा
दाखिल
एक
सरकारी
स्कूल
में
करा
दिया
।
डेल्ही
की
लाइफ
मेरी
लिए
बिलकुल
अलग
थी
।
एक
की
पढाई
भी
अलग
थी
यहाँ
पर
मेरे
क्लास
में
कई
दोस्त
भी
बने।
जब
मेरा 6 क्लास का
पेपर
हुआ
तो
पहला
पेपर
हिंदी
का
था
।मैं
पेपर
दे
रहा
था
मुझे
यह
नहीं
पता
था
की
अगर
शीट
खत्म
हो
जाये
तो
दूसरी
शीट
ले
लेनी
चाहिए
लेकिन
मुझे
यह
पता
नहीं
था
और
इसके
कारण
मेरा 3 परशन
छूट
गया
।जब
बाद
में
मुझे
पता
चला
तो
मुझे
बहुत
दुःख
हुआ
क्योंकि
मुझे
वो
सवाल
आता
था
और
मैंने
अपनी
इस
गलती
को
सुधरा
। जब मैं 10 क्लास
में
आया
तो
मेरे
कई
ऐसे
दोस्त
थे
जो
अच्छे
नहीं
थे
मेरी
उनके
साथ
दोस्ती
हुई
।
जहा
हमारा
स्कूल
था
वहाँ
से
पुराना
लोहा
पुल
आधा
किलो
मीटर
पर
था
वो
सभी
वह
रोज
जाते
थे
मुझे
भी
कहते
थे
जाने
तो
कई
बार
मैं
उनके
साथ
गया
लेकिन
मुझे
अपने
परिवार
से
बहुत
दर
लगता
था
।
इसके
कारण
मैं
नहीं
जाता
था
।
जितने
भी
मेरे
दोस्त
थे
उनमे
हर
तरीके का अमल
था
।।
वो मुझे भी कहते
थे
करने
को
मगर
मैं
बहुत
डरता
था
।।बहुत
मुश्किल
से
मैंने
अपने
आप
को
उनसे
बचाया
था
।
जब 10 क्लास
का
पेपर
हुआ
तो
उसमे
से
कई
दोस्त
फ़ैल
हो
गए
थे लेकिन मैं
पास
हो
गया
था
।
अगर
मैं
भी
उनके
साथ
रहर
और
खुद
को
अगर
नहीं
बचा
पता
तो
मैं
भी
फेल
हो
जाता
।
लेकिन 11 और 12 क्लास
में
मैं
भी
काफी
हद
तक
क्लास
बंक
मरता
था
या
पढ़ने
कम
आता
था
।
जब
मैं11 क्लास
में
आया
तो
मैं
स्कूल
बहुत
कम
अता
था
।जिस
दिन
यदि
आता
भी
था
तो
लंच
टाइम
में
मैं
घर
चला
आता
था
। 11 और 12 क्लास
में
मेरा
यही
हाल
था
।
मेरे
क्लास
टीचर
ने
भी
मुझसे
परेशांन
हो
कर
यह
कहा
की
अमजद
तुम
पास
नहीं
हो
सकते
अगर
तुम्हारा
यही
हाल
रहा
तो
।
लेकिन
कहते
हैं
न
टीचर
कभी
भी
हमारा
बुरा
नहीं
चाहते
।
उन्होंने 12 क्लास
के
पेपर
से
पहले
लग
भाग 1 महीने
पहले
अपने
विषय
के
नोट्स
बनाये
थे
और
सभी
बच्चों
को
बाँट
दिया
था
।
और
मुझसे
कहा
अमजद
मेरी
पहले
की
बातों
को
ध्यान
में
न
रखना
इस
नोट्स
को
अच्छे
से
याद
कर
लेना
तुम
पास
हो
जाओगे
।जिन
भी
बच्चों
ने
उनकी
बात
को
मन
था
वो
पास
हो
गए
थे
।
मैंने
उनके
द्वारा
दिए
सभी सवालो को
यद् कर लिया
था
।जब
रिजल्ट
आया
तो
मेरे
उस
विषय
में 87 मार्क्स आये थे
।
सच
में हमारे टीचर
हमारे
लिए
कभी
भी
बुरा
नहीं
सोचते
। फिर मैंने
अपना
दाखिला
बी.ए
में
कराया ओपन से क्योंकि मै
उतना
अमीर
नहीं
था
इसके
कारण
मुझे
ओपन
से
करना
पड़ा। 3 साल
ग्रेजुएशन
मेरी
घर
बैठ
के
ही
हुई
थी
।
बस
पेपर
देने
जाना
होता
था
।
मगर
इन 3 सालोँ
में
परिवार
की
हालात
काफी
सुधर
गयी
।
फिर
मैंने
सोचा
बी.एड
करने
को
।
मैंने
बी.एड
करना
इस
लिए
चाहा
क्योंकि
इसमें
सरकारी
नौकरी
के
चांस
ज्यादा
रहते
हैं।
और
टीचर
की
नौकरी
में
इज्जत
भी
बहुत
मिलती
है
और
आराम
भी
है।
लेकिन
मेरा
दाखिला
बी.एड
में
हुआ
तो
शुरुआत
में
मुझे
बहुत
परेशानी
का
सामना
करना
पड़ा
।
अंग्रेजी
भाषा
से
भी
मुझे बहुत परेशानी
आई क्योंकि मेरी
अंग्रेजी
अच्छी
नहीं
थी।
शरू
में
बहुत
परेशानी
हुई
लेकिन
धीरे
धीरे
सही
लगने
लगा
।
हमारे
टीचर
भी
हिंदी
में
काफी
हद
तक
समझने
लगे बी,एड
में
कई
विषय
ऐसे
भी
हैं
जिन्हें
समझने
में
बहुत
परेशानी
का
सामना
करना
पड़ा
।
लेकिन
धीरे
धीरे
वो
भी
काफी
हद
तक
समझ
आने
लगा
।मेरे
कई
अच्छे
दोस्त
भी
बने
शुरू
में
बी.एड एक बोझ
की
तरह
लग
रही
थी
।लेकिन
अब
अच्छी
लगने
लगी
।
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