four months journal

Reflective statement of aspirations and expectations, based on one is learning so far in the course (after 4 months in the course)


मेरा नाम अमजद हुसैन है   मैं इंस्टिट्यूट ऑफ़ वोकेशनल स्टडीज में बी.एड फर्स्ट इयर का स्टूडेंट हूँ। मैं बी.एड के शुरूआती दिनों का अनुभव बताना चाहता हूँ। हमारी क्लास 1 अगस्त 2016 को शुरू हुई। पहले दिन मैं जब कॉलेज गया तो मैंने बी.एड फर्स्ट इयर की क्लास के बारे में देविन्दर सर से पुछा उन्होंने कहा की आप रूम नंबर 106 में चले जाओ जब मैं वहा गया तो मैंने देखा चारो तरफ सिर्फ लड़कियां दि खायी दे रही थी। मई  रूम में गया ही नहीं मैं फिर देविन्दर सर के पास गया और मैंने कहा सर आपने रूम नंबर गलत बता दिया वहा तो सिर्फ लड़कियां ही हैं। सर ने कहा की वही बी.एड फर्स्ट येट के स्टूडेंट हैं फिर मैं वहा गया रूम के अंदर जाते ही मुझे सिर्फ लड़कियां दिखाई दे रही थी मुझे कुछ समझ नही रहा था ।तभी एक कोने से आवाज आई की भाई इधर आजाओ ।वो लड़का सचिन था और उसके पास अज़ीम भी था ।उन्हें देख के मुझे ऐसा लगा जैसे की किसी डूबते को सहारा मिल गया उसके  बाद सभी स्टूडेंट ऑडिटोरियम में गए वह पर रुबीना मैम् ने हमें कॉलेज की पूरी जानकारी दी और हमें हर एक चीज के बारे में बताया। दुसरे दिन से जब हमारी क्लास शुरू तो उस दिन सभी  स्टूडेंट का पहले इंट्रोडक्शन हुआ सभी ने अपना अपना परिचय दिया फिर क्लास शुरू हो गयी   पहली बार इतनी लड़कियों के साथ क्लास में मैं था यह मेरे लिए बहुत ही बड़ा चैलेंज था मेरी ग्रेजुएशन s.o.l से थी और सकूल भी बॉयज वाला था ।इससे पहले कभी गर्ल्स के साथ पढ़ा नहीं था इसलिए शरू में परेशानी बहुत हुई लेकिन धीरे धीरे कुछ लोगो से दोस्ती हुई   शुरूआती दिनों में सभी टीचर ज्यादातर इंग्लिश में समझा रहे थे ।मेरी इंग्लिश अच्छी ना होने के कारण मुझे बहुत परेशानी हुई।मुझे कुछ समझ नहीं आरहा था। फिर मैंने टीचर से कहा फिर धीरे धीरे टीचर हिंदी में भी समझाने लगे ।शुरुआत में सभी सब्जेक्ट के बुक्स हिंदी में नहीं थी 1 महीने से ज्यादा टाइम लग गया बुक ढूँढने  शुरू में बी.एड बहुत ही बेकार लगा दिल कर रहा था की अब छोड़ दूंगा लेकिन फिर धीरे धीरे अच्छा लगने लगा हमारे कॉलेज में सी सी एक्टिविटी होती है उसमें बहुत अच्छा लगता है। उससे हमारी थोड़ी परेशानी कम होती है। फिर टीचर ने हमें परजेंटेशन के लिए कहा और हमें टॉपिक दिए और सभी ने परजेंटेशन दिए इससे सभी की हेजिटेशन काफी हद तक ख़त्म हुई। फिर हमें स्कूल ऑब्जरवेशन के लिए भी स्कूल में भेजा गया वहा भी हमें बहुत कुछ सीखने को मिला



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